Logo
Logo Logo

Sir Jan Sarokar next-generation blog, news, and magazine !

Advertisment

Advertise with us

Maximize your reach! Advertise with us for unparalleled exposure.

Contact

भूख और सपने कराती है बिहार-झारखंड से पलायन


  • 03/07/2024
Image

अ​खिलेश अ​खिल की रिपोर्ट
बिहार-झारखंड देश के लिए श्रमिकों का खदान है. इन राज्यों से श्रम पलायन एक जटिल परंपरा बनी हुई है. रोजी-रोटी की तलाश में हर दिन लाखों लोग इन दोनों राज्यों से पलायन करके दूसरे शहर जाते हैं. अपना पसीना बहाते हैं. मेहनत की खाते हैं. आलम ये कि पलायन एक बड़ी समस्या है.

सरकारें आती जाती रही पलायन भी जारी है
आजादी के 76 साल के बाद भी देश के कई राज्य पलायन के दर्द से कराह रहे हैं. पांच साल पर देश में चुनाव तो होते हैं अ.र सरकारें भी बदलती है लेकिन पलायन करने वाले राज्यों की दशा में कोई सुधार नहीं होते. चुनाव के वक्त हर पार्टी अ.र पार्टी के नेता पलायन के सवाल तो खूब उठाते हैं लेकिन चुनाव के बाद जब सरकार बन जाती है तो पयालन की कहानी भी खत्म हो जाती है. आज तक इस देश में कोई भी सरकार इस समस्या के लिए कोई कारगर नीति तैयार नहीं कर पायी. लेकिन सबसे बड़ी बात तो यह है कि मौजूदा समय में जब चुनाव हो रहे हैं तब इस समस्या की कोई बात भी नहीं की जाती. देश की बड़ी समस्या में पलायन की समस्या सबसे बड़ी है लेकिन अब इस पर कोई चर्चा नहीं होती. जब विधान सभा चुनाव होते हैं तो कुछ राज्यों में इस मामले को लेकर कुछ बाते जरूर होती है लेकिन चुनाव खत्म होने के साथ ही इस पर चर्चा भी बंद हो जाती है. कहने के लिए तो पलायन की समस्या पूरे देश के साथ है. जो राज्य धनी हैं वहां के लोग विदेशों में पलायन करते हैं लेकिन देश जो राज्य गोबरपट्टी कहे जाते हैं उनके लोग देश के भीतर ही दर-दर भटकने को मजबूर होते हैं. गोबरपट्टी राज्यों में सबसे ज्यादा खराब हालत बिहार और झारखंड की है. इसके साथ ही बुंदेलखंड के साथ ही पूर्वी यूपी के लोग भी पलायन करने को अभिशप्त हैं. यह कड़वी सच्चाई है कि बिहार की बड़ी आबादी रोजगार से लेकर बेहतर शिक्षा तक के लिए दूसरे देश या राज्य पलायन करने को मजबूर हैं. बिहार में हाल ही में जातीय गणना की विस्तृत रिपोर्ट पेश की गई है. इसके आंकड़े चौंकाने वाले हैं  बिहार में पिछले साल ही जातीय गणना की विस्तृत रिपोर्ट पेश की गयी. इसके अनुसार बिहार में हिंदुओं मेंसवर्णों में सबसे अधिक पलायन है. बिहार के हिंदू सवर्ण वर्गों में पलायन दर 9.98% है. वहीं ओबीसी का 5.39% अ.र ईबीसी का 3.9% है. यह पलायन 1990 की दौड़ से तेज हुआ है और पलायन करने वालों की मानें तो बिहार में प्रतिभा के अनुरूप उनके पास अवसर नहीं है. 
     प्रवासी बिहारियों का कहना है कि अवसर नहीं होने के कारण उसकी तलाश में दूसरे प्रदेशों में और विदेशों में जाना पड़ता है. वहीं एक्सपर्ट की मानें तो उनका कहना है कि इसका कारण पूल फैक्टर है यानी कि संपन्न लोग रोजगार के बेहतर अवसर बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं बेहतर शिक्षा की व्यवस्था बेहतर कानून व्यवस्था के लिए उन जगहों पर पलायन करते हैं जहां यह उपलब्ध है. अधिकतर लोग मानते हैं कि टैलेंट अ.र क्वालिफिकेशन होने के बावजूद भी उच्च जाति के लोग न.करी से वंचित रह जाते हैं. आरक्षण इतना हावी है कि टैलेंट और क्वालिफिकेशन कहीं काम नहीं आता. बिहार के ही शेखर कहते हैं कि वह मैथिल ब्राह्मण हैं. उनका बेटा लंदन के सबसे बड़े स्कूल में पढ़ता है. उन्होंने बताया कि हमारे बच्चे सिर्फ इतना जानते हैं कि हम उच्च जाति में मैथिल ब्राह्मण हैं. लेकिन अगर कुछ करना है, कोई मुकाम हासिल करना है तो सिर्फ मेरी पढ़ाई, मेरा टैलेंट एजुकेशन ही काम आएगा. इसलिए मैं अपने बच्चों के पढ़ाई और एजुकेशन पर ज्यादा ध्यान ध्यान देता  हूं.  मुझे बिहार की याद हमेशा आती है. खासकर जब भी कोई त्योहार आता है तो बिहार की याद आती है. 
बिहार का एक सच यह भी है. लेकिन दूसरा सच बेहद दर्द भरा है. बिहार की सरकार हर बार यही कहती है कि बिहार में अब बहार है. यहाँ सबकुछ बदल गया है. सरकार यह भी कहती है कि बिहार में रोजगार की कोई कमी नहीं. लेकिन बड़ा सच यही है कि बिहार के कारोब दो करोड़ से ज्यादा आबादी पेट पलने के लिए दूर राज्यों में मजदूरी करने को अभिशप्त हैं. काम की तलाश में जब ये लोग घर से बहार निकलते हैं वही से इनका शोषण शुरू हो जाता है.
 कही मार खानी पड़ती है तो कही गलियां सुनने को मिलती है. लेकिन पेट की खातिर पलायन करने वाले लोग सब कुछ सह जाते हैं. 
कई बार तो दूसरे राज्यों से कई तरह के अपमान भी झेलने पड़ते हैं लेकिन बिहार की सरकार पर उस अपमान का कोई असर नहीं होता. 
   पटना के अनीसाबाद के रहने वाले प्रणव ने भी अपने पलायन की पीड़ा को बताया. पटना में प्रतिभा के अनुरूप रोजगार अ.र उसका वाजिब मूल्य नहीं मिल पाने के कारण नोएडा पलायन कर गए हैं. वे कहते हैं ह्लमैं प्राइवेट सेक्टर बैंकिंग में हूं.  बिहार में अगर मुझे न.करी मिलती अ.र वाजिब वेतन मिलता तो बिहार में शिफ्ट कर जाता. पटना में घर पर माताजी अकेले रहती हैं अ.र पिताजी नहीं हैं.  मैं घर का इकल.ता बेटा हूं. 
      हजीपुर के विजय कुमार वकालत करने के बाद दिल्ली में शिफ्ट हो गए हैं. पहले हाई कोर्ट में वकील थे लेकिन बाद में अच्छे करियर के लिए दिल्ली शिफ्ट हुए हैं.  उन्होंने बताया कि बिहार में कॉपोर्रेट होते, मार्केट वैल्यूएशन होता तो बिहार से बाहर शिफ्ट नहीं करते. ह्लजितनी मेरी शिक्षा है जितना मेरा एजुकेशन है, उस अनुरूप बिहार में पैसा नहीं कमा पा रहे थे. घर चलाने के लिए पैसे की बेहद जरूरत होती है. बाहर जाना पड़ा. 
बिहार के प्रख्यात समाजशास्त्री अ.र नक्सल आंदोलन पर रिसर्च करने वाले ए एन सिंह इंस्टिट्यूट आॅफ सोशल साइंसेज के प्रोफेसर डॉ बीएन प्रसाद ने बताया कि हिंदू सवर्णों के पलायन को यदि समझना है तो बिहार के समाज में जो ऐतिहासिक परिवर्तन हुआ है उसको देखने की आवश्यकता है.  साल 1990 के द.र से यह पलायन शुरू हुआ है.  यह वह द.र है जब मंडल कमीशन लागू हुआ अ.र उसे समय जब कई जातियों का उभरा हुआ अ.र आरक्षण की व्यवस्था लागू हुई उसे समय अपर कास्ट के लोगों के लिए कोई अधिक विकल्प नहीं थे.
             कई लोग यह भी मानते हैं कि एक तरफ आरक्षण के कारण सवर्ण वर्ग के बीच जब की कमी आ गई थी अ.र दूसरी अ.र प्राइवेट सेक्टर में नई जॉब उभर रहे थे.  इसका पूरा फायदा ऊंची जाति के लोगों ने उठाया. इन्हें पलायन के लिए विवश नहीं किया गया है बल्कि अपने बच्चों के बेहतर शिक्षा व्यवस्था, बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं, बेहतर रोजगार के अवसर, बेहतर कानून व्यवस्था बेहतर जीवन शैली इत्यादि के लिए लोगों ने पलायन किया है. डॉ बीएन प्रसाद ने बताया कि बिहार में शहरीकरण का द.र देश के अन्य राज्यों के तुलना में काफी कम है, यहां मात्र 15.3% है. यानी 85% आबादी गांव में रहती है अ.र इन 85% आबादी में 75% कृषि अ.र इससे जुड़े कार्यों से जुड़े हुए हैं. इसके अलावा बिहार में एंप्लॉयमेंट 36% है अ.र 64% आबादी अन एंप्लॉयड या अंदर एंप्लॉयड है. 
इतिहास में जाए तो पता चलता है कि  बिहार में सम्राट अशोक ने प्रशासन प्रणाली का एक ढांचा विकसित किया था. आज भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर यह बहस चल रही है कि क्या सम्राट अशोक ने ही आधुनिक खुली अर्थव्यवस्था की नींव रखी थी. लेकिन यह विडंबना ही है कि आज उसी बिहार का उल्लेख सबसे ज्यादा पलायन करने वाले राज्यों में शामिल है. 
         आजादी के बाद का देश का अकेला जनआंदोलन बिहार ने खड़ा किया था, लेकिन आज यही बिहार रोजगार अ.र शिक्षा के लिए पलायन का दंश झेल रहा है.  हाल के दिनों में आंकड़ों के माध्यम से इस पलायन के दर्द पर मरहम लगाने का प्रयास किया गया.  बिहार के बदलने के संकेत दिए गये, लेकिन जमीनी स्थिति कितनी बदली है यह अभी अस्पष्ट है. 
         मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने 2012 में दावा किया था कि 2008 से 12 के बीच पलायन में 40 फीसदी तक कमी आई है.  बिहार में ही लोगों को काम मिलने लगा है.  यहां तक कि पंजाब सरकार की ओर से पत्र भी आया है इसमें उनके यहां फसल कटने के लिए मजदूर नहीं मिलने की बात कर रहे हैं.  लेकिन सच्चाई आज भी यही है कि लाखों लोग रोजगार के लिए बिहार से पलायन करते हैं. इंजीनियरिंग अ.र मेडिकल में एडमिशन कराने के लिए कोचिंग करने फिर इसकी पढ़ाई करने के लिए बड़ी संख्या में छात्र दूसरे राज्य जा रहे हैं.  कोरोना के समय जितने बड़े पैमाने पर बिहार के लोग अलग-अलग राज्यों से ल.टे वह तस्वीर कोई भूल नहीं सकता. 
          साल 2020 बिहार विधानसभा चुनाव की बात करें तो इस चुनाव में राजनीतिक दलों ने रोजगार अ.र पलायन को मुद्दा बनाने की पूरी कोशिश की थी.  पलायन अ.र रोजगार जैसे मुद्दों ने राजनैतिक पार्टियों का ध्यान भी अपनी ओर खींचा था.  इसलिए तो राजद  ने बेरोजगारी को मुद्दा बनाया अ.र चुनावी वैतरणी पार करने की कोशिश की थी.  जिसमें राजद  ने 10 लाख सरकारी न.करी देने का वादा किया था. जिसके जवाब में बीजेपी ने 19 लाख रोजगार देने का वादा किया था. 
    थोड़ा पीछे चले अ.र समझे कि आखिर आंकड़ें क्या कहते हैं. दरअसल, साल 1951 से लेकर 1961 तक बिहार के करीब 4 फीसदी लोगों ने दूसरे राज्य में पलायन किया था. वहीं, 2011 की जनगणना के आंकड़ों पर नजर डाले तो 2001 से 2011 के बीच करीब 93 लाख लोग बिहार छो