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लीक से हट कर

बिहार में बच्चा बाबू के जहाज का जमाना


  • 07/07/2024
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कृष्ण रंजन शर्मा, सोशल ​थिंकर

बच्चा बाबू सोनपुर के रईसों में से एक थे जिनकी बांस घाट से पहलेजा घाट के बीच स्टीमर चलती थी। उस वक्त नाव के अलावे  उत्तर बिहार से दक्षिण बिहार तक जाने के लिए कोई साधन नहीं था सिवाय बच्चा बाबू के जहाज के। 

पटना और पहलेजा घाट के बीच दो पानी का जहाज (स्टीमर) चला करता था। बांस घाट से बच्चा बाबू का जहाज काफी लोकप्रिय था। बच्चा बाबू सोनपुर के रईसों में से एक थे जिनकी बांस घाट से पहलेजा घाट के बीच स्टीमर चलती थी। उस वक्त नाव के अलावे  उत्तर बिहार से दक्षिण बिहार तक जाने के लिए कोई साधन नहीं था सिवाय बच्चा बाबू के जहाज के। बड़ी तादाद में लोग इस जहाज से आवागमन किया करते थे। लेकिन समस्या यह थी की बच्चा बाबू का जहाज पर नहीं चलता था लोग घंटों इसका इंतजार किया करते थे। लोगों को बांस घाट से पहलेजा घाट जाने में काफी समय तक जहाज का इंतजार करना पड़ता था। जैसे ही लोग बच्चा बाबू के जहाज को आते देखते चेहरे पर खुशी झलकने लगती थी। जहाज पर चढ़ने के लिए लोग धक्का-मुक्की तक करते थे। गंगा एलसीटी सर्विस उन दिनों काफी लोकप्रिय थी। इस पर वाहन और मवेशी को भी लाद दिया जाता था। कई बार तो क्षमता से अधिक पैसेंजर होने पर उन्हें उतार दिया जाता था और फिर 4 से 6 घंटे तक फिर इंतजार लोगों को करना पड़ता था। महात्मा गांधी सेतु के शुरु होते ही पहलेजा घाट की रौनक खत्म हो गई थी और गंगा की लहरों को चीर कर उत्तर बिहार के लोगों को पटना पहुंचाने वाले वो स्टीमर भी इसके साथ ही ना जाने कहां गुम हो गए थे।  एक घंटे 10 मिनट की वो यात्रा कितनी रोमांचक होती थी। तब सोनपुर से पहलेजा घाट जंक्शन आना पड़ता था स्टीमर पकड़ने। 11 किलोमीटर का वो सफर स्टीमरों के बारे में सोचते-विचारते ही गुजर जाता था। फिर पहलेजा घाट स्टेशन से करीब आधा किमी गंगा की रेत पर पैदल चलना पड़ता था तब जाकर स्टीमर की सवारी का मौका हाथ लगता।सेकेंड क्लास में ना कोई बेंच ना कुर्सी। जहां मर्जी हो बैठ जाइए। प्रथम श्रेणी में व्यवस्था बेहतर थी सीसे के दरवाजे वाले केबिन और गद्देदार कुर्सियां।उत्तर बिहार और दक्षिण बिहार को जोड़ने के लिए पटना के महेंद्रू घाट से सोनपुर के पास पहलेजा घाट के बीच रेलवे की स्टीमर सेवा काफी लोकप्रिय थी.पटना जंक्शन से सोनपुर तक के रेल टिकट पर दूरी 42 किलोमीटर अंकित रहती थी. पहलेजा घाट से सोनपुर रेलवे स्टेशन की दूरी 11 किलोमीटर थी.सेकेंड क्लास में ना कोई बेंच ना कुर्सी. जहां मर्जी हो बैठ जाइये. पहले दर्जे में सीसे के दरवाजे वाले केबिन और गद्देदार कुर्सियां से लैस होता था.पानी के ये जहाज स्टीम यानी भाप से चलते थे. 
 स्टीमर में कोयले को जलाकर भाप तैयार किया जाता था और इसी भाप की ताकत से पानी काटने वाले स्टीमर के चप्पू तेज गति से चलते थे। 40 साल पहले एक ऐसी रेल लाइन थी, जिस पर ट्रेन से सफर में यात्रियों को एक ऐसी अद्भुत रोमांच का अवसर मिलता था, जो अब यादों में ही तरोताजा है. यात्री ट्रेन से उतरकर गंगा नदी को स्टीमर में बैठकर पार करते थे और फिर ट्रेन में बैठते थे. यह यात्रा एक किलोमीटर की होती थी. खास बात यह है कि यात्रियों को स्टीमर में भी उसी क्लास में बैठाया जाता था, जिस क्लास में उनका ट्रेन में आरक्षण होता था.महेंद्रू घाट से पहलेजा घाट (सोनपुर तक) जाने का कि‍राया दो रुपये था.लेकि‍न पहलेजा से पटना लौटने का कि‍राया पटना घाट तक का कि‍राया भी दो रुपये था. महेंद्रू घाट से सरकारी जहाज खुलता था, जो डबल डेकर था. इसमें एक कैंटीन भी होता था. यात्री केवि‍न में गंगा की अठखेलि‍या देखने के लि‍ए खासतौर से बैठते थे. फर्स्ट क्ला‍स का टि‍कट दस रुपये और सेकेंड क्लास का दो रुपये लगता था. महेंद्रू घाट पर बहुत अच्छा कैंटीन था.