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देश दुनिया

बिहार के दरभंगा में है एक कनॉट प्लेस


  • 09/07/2024
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कृष्ण रंजन शर्मा, सोशल ​थिंकर
बिहार के कनॉट प्लेस जिसे आज गोल मार्केट के नाम से जाना जाता है, को दरभंगा महाराजाधिराज कामेश्वर सिंह ने 1934 में बनवाया था.

बिहार के लोग ही इस बात से अनभिज्ञ हैं कि बिहार में भी एक कनॉट प्लेस बनाया गया था. जी हां, बिहार के दरभंगा जिला में बिहार का कनॉट प्लेस आज भी मौजूद है, परंतु इस तथ्य से न केवल बिहारवासी बल्कि दरभंगा निवासी तक अनजान हैं. बिहार के कनॉट प्लेस जिसे आज गोल मार्केट के नाम से जाना जाता है, को दरभंगा महाराजाधिराज कामेश्वर सिंह ने 1934 में बनवाया था. उन्हें अपने पिता महाराज रामेश्वर सिंह की जुलाई 1929 में मृत्युपरांत सबसे बड़े पुत्र होने के नाते दरभंगा की राजगद्दी के उत्तराधिकारी बनाया गया था. वे ही दरभंगा की राजगद्दी के अंतिम नरेश भी रहे. दरभंगा महाराज एक बार राजधानी दिल्ली के प्रवास पर थे. उस वक्त दिल्ली में एक अंग्रेज वास्तुविद रोबर्ट टोर रसल कनॉट प्लेस, सफदरजंग एन्क्लेव और लुटियंस बंगला बनाने में व्यस्त था. कनॉट प्लेस की बनावट और योजना देख महाराजा अत्यंत प्रभावित हुए. महाराजा कामेश्वर सिंह ने कनॉट प्लेस के आर्किटेक्ट रोबर्ट रसल से संपर्क कर इसी तरह की इमारत दरभंगा में बनवाने का प्रस्ताव वास्तुविद के समक्ष रखा. तब रोबर्ट रसल अपनी दिल्ली की परियोजना में बहुत ज्यादा व्यस्त थे. परंतु अपनी तमाम व्यस्तता के बावजूद महाराजाधिराज के प्रस्ताव को वे नकार न सके. अतः दिल्ली कनॉट प्लेस के साथ-साथ दरभंगा कनॉट प्लेस का भी निर्माण कार्य शुरू कर दिया गया. दोनों कनॉट प्लेस में बस एक ही अंतर देखा जा सकता है कि जहां दिल्ली का कनॉट प्लेस गोलाकार है वहीं दरभंगा का कनॉट प्लेस अंडाकार है. दिल्ली कनॉट प्लेस का निर्माण सन 1929 में शुरू की गई थी और सन 1933 में बनकर तैयार हो गई. जबकि दरभंगा कनॉट प्लेस अपने निर्धारित समय से पहले सन 1934 में बनकर तैयार हो गई. संलग्न सैटेलाइट फोटो में इस गोल मार्केट को देखा जा सकता है.इसको देख कर दिल्ली के एक प्रबुद्ध नागरिक व इतिहासविद सुहैल हाशमी ने लिखा कि दिल्ली का “कनाॅटप्लेस 1929 में शुरू होकर 1933 में बन कर तैयार हुआ था और उसे बनाने में 4 बरस लगे थे. दरभंगा वालों ने बड़ी जल्दी नकल कर डाली. शायद इसीलिए गोलाकर के बजाये अंडाकार हो गया. बिहार का कनॉट प्लेस बनाने में शायद 1934 के बजाय कुछ और वर्ष लगता परंतु उसी वर्ष बन कर तैयार होने का एक प्रमुख कारण रहा बिहार में 1934 में आई एक भयंकर भूकंप जिसने पूरे बिहार में काफी तबाही मचाई थी. दरअसल इस भयंकर भूकंप के कारण महाराज कामेश्वर सिंह का रिहायशी महल भी कई जगहों से टूट फूट गया. जिसके बाद महाराज कामेश्वर सिंह ने वास्तुविद रसल से अनुरोध किया कि वे जल्द से जल्द उनके गोल मार्किट (कनॉट प्लेस) को तैयार कर दें ताकि वे सपरिवार उसमें रहने चले जाएं और उनके महल की टूट फुट का पुनर्निर्माण जल्द से जल्द कराया जा सके. इसलिए इस ऐतिहासिक निर्माण को समय से पहले तैयार किया गया.
 दिल्ली कनॉट प्लेस की तर्ज़ पर दरभंगा कनॉट प्लेस में भी आउटर और इनर सर्किल देखा जा सकता है. यहाँ भी रैडियल रोड बने थे जो विभिन्न स्थानों में आवागमन की सुविधा प्रदान करती थी. इस गोल मार्केट में सौ से अधिक दुकानें थीं. गोल मार्केट के उत्तरी सिरे के पीछे एक टावर था, जो अभी भी है. परन्तु यह एक दुर्भाग्य की बात है कि बिहार का राजनीतिक नेतृत्व इस निर्माण के ऐतिहासिक धरोहर सम्बन्धी महत्व को समझ न सका और इस गोल मार्केट में चंद्रधारी मिथिला कॉलेज (C M College) जो लहेरियासराय के एक निजी भवन में स्थापित था, को यहां स्थानांतरित कर दिया. इसी चंद्रधारी मिथिला कॉलेज को 70 के दशक के मध्य में विभाजित कर दो कॉलेज बना दिए गए. एक तो मूल सी एम कॉलेज ही रहा और दूसरा सी एम साइंस कॉलेज बनाया गया. कॉलेज बनने के बाद उनकी आंतरिक संरचना में काफी परिवर्तन किये गए. बाह्य संरचना जस की तस रही लेकिन खाली जगह पर चार लैब बनाये गए. दक्षिण सिरे पर मुख्य द्वार है जिसका पहला कक्ष बॉयज कॉमन रूम और दूसरा कक्ष गर्ल्स कॉमन रूम बनाया गया.  दिल्‍ली के कनॉट प्‍लेस की तर्ज पर दरभंगा को प्‍लान करते समय अंगरेज वास्‍तुविद ने इस गोल मार्केट को बनाया था. यह दुर्भाग्‍य ही कहा जाएगा कि इस मुख्‍य बाजार को लोगों ने कॉलेज बना दिया. इन कालेजों का अपना एक अलग कैंपस होना चाहिए था जो मुख्य शहर से थोड़ा दूर होता तो उस इलाके का भी विकास हो जाता और बिहार के इस कनॉट प्लेस का संरक्षण भी. वैसे इस कनाट प्लेस के आउटर सर्किल (CP, New Delhi की तर्ज़ पर) में आज भी कुछ दुकाने मौजूद हैं.

  • 1929 में शुरू की गई थी दिल्ली कनॉट प्लेस का निर्माण कार्य और सन 1933 में बनकर तैयार हो गई थी, 4 साल लगे थे बनने में
  • 1934 में दरभंगा महाराजाधिराज कामेश्वर सिंह ने बनवाया था बिहार कनॉट प्लेस. जिसे आज गोल मार्केट के नाम से जाना जाता है.