देश की ये पांच ग्रामीण महिला मॉडल

कविता झा, लेखिका
भारत गांव का देश है. महिलाएं गांव के खेत-खलिहान से लेकर हाट बाजार तक हर रोज विकास की नई कहानियां लिख रही है. बहुत कम लोग जानते है कि देश के विकास में महिलओं का जो योगदान है वो आज भी हाशिये पर है. एक खास रिपोर्ट...
खेती से आर्थिक उन्नति की नई कहानी लिख दी है हरियाणा के अंबाला की अमरजीत कौर
हरियाणा के अंबाला जिले का छोटा-सा गांव है अधोई, जहां कृषि ही लोगों का मुख्य पेशा है. यहां के ही ग्रामीण परिवेश में पली-बढ़ी हैं अमरजीत कौर. 12वीं की पढ़ाई पूरी करने के बाद अभी स्नातक में दाखिला लिया ही था कि कृषक पिता की तबियत बिगड़ने पर इसका प्रभाव परिवार की आर्थिक स्थिति पर भी पड़ा. तब बेटी ने पिता के खेतों की जिम्मेदारी लेने का निर्णय लिया. जो भी थोड़ी-बहुत जानकारी थी, उसकी मदद से उन्होंने खेतों में कार्य करना शुरू कर दिया. कई बार तो सुबह चार बजे जाती तो रात में घर लौट पाती थीं अमरजीत. लेकिन न मेहनत करना छोड़ा और न ही टूटा उनका हौसला. आज अमरजीत के खेतों में मौसम के अनुसार, गन्ने से लेकर गेंहू, धान, सब्जी, मक्का सभी फसलें उगाई जाती हैं. वे खुद ही इसे बाजार तक पहुंचाती हैं. उतना ही जानती थी. मुश्किल दौर था वह. लेकिन कुछ लोगों की मदद से आगे बढ़ी. शुरू के तीन वर्ष ठेके पर ली हुई. तकरीबन 15 एकड़ के खेत में अकेले, बिना किसी मजदूर की सहायता के काम किया.
संतोष ने जैविक खेती के जरिये फलों की कई किस्में उगाकर देश में इतिहास रच दी है
संतोष राजस्थान के सीकर जिले के गांव बेरी के एक सामान्य परिवार से आती हैं. कुछ अलग हटकर करने की चाहत में उन्होंने जैविक खेती शुरू की. नवाचार के जरिये कटिंग विधि से अनार की नई जैविक किस्म विकसित की, जिसके लिए उन्हें प्रदेश सरकार से सम्मान मिला है. 2019 में वे ‘खेतों के वैज्ञानिक’ सम्मान से भी नवाजी जा चुकी हैं. इनके पिता होमगार्ड के जवान थे, लेकिन 2013 में उन्होंने भी नौकरी छोड़ बागवानी में हाथ बंटाने का निर्णय लिया.
अपनी बुलंद आवाज में बताती हैं संतोष, ‘हम नई विधि से अनार, अमरूद, नींबू, माल्टा एवं किन्नू के पौधे कटिंग विधि से तैयार करते हैं. पौधे तैयार हो जाने के बाद उन्हें उचित कीमत पर किसानों को उपलब्ध कराया जाता है.’ बड़ी बात यह भी है कि संतोष कृषि में उन्नत तकनीक का इस्तेमाल करती हैं. वे ट्यूबवेल, बूंद-बूंद सिंचाई एवं सौर ऊर्जा का प्रयोग करती हैं. कुछ समय पूर्व इन्होंने राजस्थान में सेब के पौधे तैयार करने में भी उपलब्धि हासिल की है.
शमीमा ने आलू की खेती से बदल दी है अपने आसपास के लोगों की आर्थिक तस्वीर
शमीमा के पति किसान हैं. वे खुद भी उनके साथ खेतों में बीज की कटाई से लेकर श्रमिकों को दिशा-निर्देश देना, सब देखती हैं. दो वर्ष पहले इनका संयुक्त राष्ट्र के प्रोजेक्ट डेवलपमेंट (यूएसएआइडी) कार्यक्रम से जुड़ना हुआ, जो पेप्सिको इंडिया कंपनी के साथ मिलकर ग्रामीण महिलाओं (किसानों) के सशक्तीकरण के साथ ही उन्हें सस्टेनेबल फार्मिंग के बारे में जागरूक करता है. पश्चिम बंगाल के हुगली जिले के छोटे से गांव मोलयपुर की शमीमा ने भी बकायदा प्रशिक्षण लेकर अपनी जमीन पर आलू की खेती करनी शुरू की. एक मौसम में वे करीब 12 टन आलू की उपज कर लेती हैं. वह बताती हैं,‘मैं वर्ष 2010 में ‘ईद मुबारक’ नाम के एक स्वयं सहायता समूह से जुड़ी थी. इसमें गांव की कृषक महिलाएं शामिल होती हैं. आज उस समूह का नेतृत्व कर, अन्य महिलाओं को उन्नत खेती के बारे में जागरूक करती हूं.
क्या आप मशरूम लेडी ऑफ इंडिया को जानते हैं!
मशरूम लेडी ऑफ इंडिया के नाम से प्रसिद्ध बिहार के मुंगेर की रहने वाली बीना देवी महिलाओं के लिए प्रेरणा स्रोत है. 2013 में आर्थिक तंगी से उबरने के लिए 1 किलो बीज लेकर पलंग के नीचे मशरूम उगाने वाली बीना देवी अपने मेहनत के बल से मशरूम की खेती में आर्थिक रूप से सुदृढ़ हुई हैं. इनसे प्रभावित होकर आसपास के लगभग 3000 से अधिक परिवार मशरूम की खेती कर आर्थिक रूप से मजबूत हो रहे हैं. अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर मशरूम लेडी ने आधी आबादी को आत्मनिर्भर बनने का संदेश दिया है. बीना देवी मशरूम उत्पादन में इतनी चर्चित हुई कि इनकी पहचान थोड़े ही दिनों में पूरे राज्य में होने लगी. तभी तो कभी स्कॉर्पियो पर चढ़ने को सपना मानने वाली बीना देवी सीएम से मिलने पहुंची तो स्कॉर्पियो पर चढ़कर गई.
झारखंड की बैंक वाली दीदी देश के लिए किसी नजीर से कम नहीं
झारखंड में चिंतामणी देवी ने अपने गांव-पंचायत में एक गृहिणी के साथ-साथ एक कुशल बिजनेस कॉरेस्पोंडेंट सखी के रूप में पहचान बनाई है। रांची के बुडमू प्रखंड के कटंगदिरी गांव की चिंतामणी देवी को आज लोग बैंक वाली दीदी कहकर बुलाते हैं। अब कटंगदिरी गांव के ग्रामीणों को बैंक के चक्कर नहीं लगाने पड़ते। उनका बैंक अब चिंतामणी बन चुकी है। लाभार्थियों को घर बैठे मिल रहा पैसा : चिंतामणी की आत्मनिर्भरता की कहानी गुलाब-जल स्वयं सहायता समूह से जुड़ने के साथ शुरू हुई. इसके बाद चिंतामणी जेएसएलपीएस, ग्रामीण विकास विभाग से मिले सहयोग और प्रशिक्षण की बदौलत आज बैंक ऑफ इंडिया में बीसी सखी के रूप में कार्य करने लगी. अब वह गांव-गांव घूमकर लोगों को बैंकिंग सेवाएं उपलब्ध करा रही हैं.
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