दिनकर का रणकांड : हाथ में कुल्हाड़ा था जिससे उन्होंने जड़ता पर प्रहार किया.

प्रियदर्शी रंजन.
'राष्ट्र कवि' विभूषण से विभूषित, 'साहित्य अकादमी' पुरस्कार से सम्मानित, ‘पद्म भूषण’ की उपाधि से अलंकृत, ‘युगदृष्टा’, 'महान दार्शनिक' तथा 'पूर्ण स्वाधीनता की अभिलाषा के महान रचनाकार’ “रामधारी सिंह दिनकर” का उर्वशी के लिए १ सितम्बर १९७३ को ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त करते समय उनका अपने पर किया गया वह टिपप्णी महत्वपूर्ण है, जिसमें उन्होंने कहा था कि "भगवान ने जब मुझे इस पृथ्वी पर भेजा था तो मेरे एक हाथ में हथौड़ा दिया और कहा कि जा तू इस हथौड़े से चट्टान के पत्थर को तोड़ेगा और तेरे तोड़े हुए अनगढ़ पत्थर भी कला के समंदर में फूल के समान तैरेगा... मैं रंदा लेकर काठ को चिकनाने नहीं आया था... मेरे हाथ में कुल्हाड़ा था जिससे मैं जड़ता की लकड़ियों को फाड़ रहा था". वाकई, परस्तिथित चाहे अनुकूल हो प्रतिकूल, पौरुष और ललकार के कवि माने जाने वाले दिनकर ने अपने सिद्धांतों और कर्तव्यों का कड़ा पालन व्यक्तिगत जीवन के साथ ही अपनी साहित्यिक कृतियों में आजीवन किया. स्वतंत्रता संग्राम के दिनों में अपनी रचना रेणुका में हिमालय से भीम और अर्जुन लौटने की याचना करने वाले दिनकर को जब लगा कि आजादी के बाद हमारे नेता जनता का कार्य न करके भोग और विलास में आकंठ डूबे हुए हैं, तब उन्होंने 'दो राह, समय के रथ का घर्घर नाद सुनो, सिंहासन खाली करो कि जनता आती है', जैसी पंक्तियों का पाठ करने से भी गुरेज नहीं किया. दरअसल, दिनकर ने महान कवि, उत्कृष्ट गद्यकार, उत्साही गायक और शाश्वत वक्ता के तौर पर भारत के कण-कण को जगाने का प्रयास किया है. उनकी कविताएं, किस्सों और किताबों ने हर पीढ़ी को एक साथ जोड़ा है. जनलोकप्रियता के मामले में किसी भी महाग्रंथ की तुलना में दिनकर की रचनाएं कमतर नहीं हैं. उनकी कविताएं किसी अनपढ़ वर्ग को उतनी ही पसंद है जितनी कि उन पर शोध करने वाले शोधार्थी को. रश्मिरथी की पंक्तियाँ भारत में शायद सबसे अधिक प्रयुक्त होने वाली पंक्तियाँ है. उनकी प्रसिद्ध रचनाएं उर्वशी, परशुराम की प्रतीक्षा, कुरुक्षेत्र, रश्मिरथी, रेणुका, संस्कृति के चार अध्याय, हुंकार, सामधेनी, नीम के पत्ते सदैव अविस्मरणीय है.
यही कारण है दिनकर की रचनाएँ समय के साथ कालजयी होती जा रही है और उनकी रचनाओं ने उन्हें भारत के उन साहित्यकारों की गौरवपूर्ण श्रृंखला में स्थापित किया है जिसमें हर युग में श्रेष्ठ माने जाने वाले ऋषि बाल्मीकि, महर्षि व्यास, कालीदास, तुलसीदास, कबीर, सूरदास, नानक जैसे देवतुल्य विभूति शामिल हैं. जिस तरह रामायण, महाभारत, रामचरित मानस, मेघदूतम, बीजक, नानक के दोहे आम संवाद में उद्धत किये जाते हैं उसी प्रकार दिनकर की रचनाओं को स्थान प्राप्त हुआ है. वर्तमान में धार्मिक चेतना की बात हो, सामाजिक चेतना की बात हो, राजनैतिक चेतना की बात हो, नैतिक चेतना की बात हो या किसी अन्य तरह की परिवर्तन की बात हो, उसे दिनकर की पंक्तियों से आहूत करने की व्यवहारिक परमपरा बन गई है.
बाहरहाल, यूं तो दिनकर पर कई महान जनों ने अपनी रचनायें निवेदित की है, उसी कड़ी में मैंने भी दिनकर जी को कुछ शब्द अर्पित किया है. जो 'रामधारी सिंह दिनकर का रणकांड' शीर्षक से है.
रामधारी सिंह दिनकर का रणकांड
याचना और रण देख
प्रेम और प्रहार देख
पौरुष और ललकार देख
नैतिकता और संग्राम देख
चाहे तो राजनीतिक चेतना देख
चाहे तो सामाजिक चेतना देख...
चाहे तो ओज देख
चाहे तो जोश देख
दिन में रात का काल देख
रात में दिन का तप देख
स्वतंत्रता के रण में निशान देख
संघर्षों में तपी जवानी देख
सफर में पदचाल देख,
चाहे तो हुनर बेमिसाल देख
चाहे तो दिनकर का हर अंदाज़ देख...
कृषक कुल के दिनकर का कर्मकांड देख
एक हाथ में लिए हथौड़ा उनका अवतार देख
कला के समन्दर में तैरते उनके
गढ़े_अनगढ़े शब्द रूपी पत्थरों को
फूलों के समान तैरते बारम्बार देख
उनके कुल्हाडे से जड़ता की
लकिड़यों का फाड़ देख…
'ज्ञानपीठ पुरस्कार' से सुशोभित,
'साहित्य अकादमी' से सम्मानित,
‘पद्म भूषण’ से विभूषित,
'राष्ट्र कवि' से अलंकृत,,
‘युगदृष्टा’,
'महान दार्शनिक'
'स्वाधीनता का पूर्ण अभिलाषी
रणबांकुरा रामधारी का रण देख…
शत कोटि ओज, शत कोटि जोश
शत कोटि संवेदना, शत कोटि करुणा
शत कोटि मर्म, पीड़ा, वेदना
शाट कोटि ऊर्जा, शत कोटि चेतना
शत कोटि संसार की प्रतिबद्धता
शत कोटि दिनकर का रण देख ...
बाल्मीकि, व्यास, नानक, कालिदास, सूरदास, तुलसीदास
के समान देव तुल्य उनका आभा मण्डल,
काल के कपाल जो उकेर सके शब्द
उसकी कालजईता का निशान देख...
याचना और रण देख
प्रेम और प्रहार देख
पौरुष और ललकार देख
नैतिकता और संग्राम देख
चाहे तो राजनीतिक चेतना देख
चाहे तो सामाजिक चेतना देख...
शत कोटि भावना का प्रज्वलन
शत कोटि दिनकर का रणगान सुन ...
जन-जन की जिह्वा पर विराजित
रश्मिरथी और कुरुक्षेत्र का नाद सुन
साहित्य के शीर्ष का गौरव गान सुन
शोषण के विरुद्ध हुंकार सुन
शत कोटि दिनकर के रण का अध्याय सुन…
दिनकर में हर काल का गान सुन
दिनकर में झंकार सुन
प्रेम , मानवता , सभ्यता, संस्कृति, क्रांति, प्रतिकार का थाप सुन
सिंहासन खाली करो कि जनता आती है का शंखनाद सुन…
और रही हो आत्मा इससे भी अतृप्त
कलम, आज उनकी जय बोल पढ़
परशुराम की प्रतीक्षा पढ़
रेणुका में हिमालय से याचना का गान पढ़
संसद में सिमरिया के लाल का प्रतिकार पढ़
चाहे तो ओज पढ़ चाहे तो जोश पढ़
रणबाकुंरा रामधारी का रण पढ़,
कलम, आज उनकी जय बोल पढ़…
Recent Posts
समाज के नायक
Latest breaking news and special reports