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राजनीती और समाज

गुलाम बनाने वालों का दिया नाम "बिहार" ही क्यों ?


  • 04/07/2024
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प्रियदर्शी रंजन 
विहार बौद्धों का पवित्र शब्द है जिसका शाब्दिक अर्थ होता है बौद्ध भिक्षुओं का आवास. विहार के अपभ्रंश से बिहार बना और भारत में बिहार नाम से एक प्रदेश है. लेकिन, वैदिक काल में जिसे प्राच्य या पूर्व प्रदेश तथा उसके बाद के काल में उसके विभिन्न हिस्सों को मगध, अंग, वज्जि, मिथिला, ओदंतपुरी आदि नामों से जाना जाता था उसका  "बिहार'' नाम ही क्यों?  बिहार नाम का इतिहास क्या है? बिहार नाम कैसे?  किसने दिया?  
           दिलचस्प यह कि बिहार देश का एक मात्र राज्य है जिसका नाम किसी धर्म विशेष के प्रतीक से जुड़ा है. देश के किसी हिस्से का बिहार नाम देना किसी धर्म को विशेष आरक्षण देने जैसा लगता है. उससे भी अधिक दिलचस्प यह कि आज़ाद भारत में भी इस क्षेत्र को बिहार नामक राज्य से ही जाना जा रहा है. जबकि इस क्षेत्र पर बौद्ध शासकों और बौद्धों के उत्कृष्ट प्रभाव के दौरान भी इसे विहार या बिहार नहीं कहा गया. बुद्ध का समकालीन और बुद्ध का शिष्य तथा भारत में साम्राज्य का वास्तविक संस्थापक राजा माना जाने वाला बिम्बिसार और उसके पुत्र अजातशत्रु ने बुद्ध में परम निष्ठा रखने के बाद भी इस क्षेत्र का नाम विहार या बिहार नहीं रखा. उसके बाद भी कई बौद्ध शासक आये जिसमें महान अशोक भी शामिल था लेकिन किसी ने इस क्षेत्र को विहार या बिहार नाम नहीं दिया. 
      इस कथित बिहार क्षेत्र को समझें तो यह जितना बुद्धों का उससे कहीं कम जैनियों का नहीं है. और सनातनियों/हिंदुयों के लिए यह क्षेत्र तो अति महत्वपूर्ण है. बुद्ध को यहाँ ज्ञान मिला तो महावीर का जन्म यहीं हुआ. हिंदुयों में माता का स्थान रखने वाली सीता का जन्म भी इसी क्षेत्र के मिथिला में हुआ. इसी राज्य में भगवान राम और माता सीता का मिलन भी हुआ. इस राज्य में भारत के प्राचीन मंदिरों में से एक माने जाने वाला मुंडेश्वरी मंदिर मौजूद है. ये मंदिर भगवान शिव और माता पार्वती का है. सिखों के 10वें गुरु (गुरु गोबिंद सिंह)  का जन्म भी इसी क्षेत्र में हुआ. हरमिंदर तख्त (पटना साहिब) पटना में है. ऐसे में इस क्षेत्र को एक धर्म विशेष के नाम पर नामकरण अन्य धर्मों के साथ अन्याय लगता है. जाहिर है बिहार ने विभिन्न धर्मो, सम्प्रदायों, विचारों को सामान रूप से सम्मान दिया. शायद इसी कारण से प्राचीन समय में कभी किसी धर्म, सम्प्रदाय या विचार विशेष के शासकों या समर्थकों ने इस क्षेत्र को एक धर्म विशेष के नाम के साथ नामकरण करने का प्रयास नहीं किया. आप जानकार हैरान रह जायेंगे की 12 वीं शताब्दी के अकर्मणकारी  मुस्लिम शासकों ने इस क्षेत्र विशेष को पहली बार 'बिहार' कहना शुरू किया. कहा जाता है कि बिहार नाम का पहली बार प्रयोग करने वाले लोग  इतिहास में कुख्यात बर्बर, बहसी, दरिंदा और नालंदा विश्वविद्यालय को आग में ख़ाक कर खंडहर करने वाला बख्तियार खिलजी और उसके गुर्गे थे. बात तब की है जब तुगलकों के भारत विस्तार में बख्तियार एवं उसके गुर्गों का पड़ाव ओदंतपुरी (अभी का नालन्दा) में पड़ा था. इस क्षेत्र में बौद्ध भिक्षुओं के आवास थे जिसे विहार कहा जाता था और विहार का सही उच्चारण नहीं करने की वजह से तुर्कों ने विहार को बिहार कहा. हालाँकि बख्तितार ने बिहार नामक प्रशाशनिक इकाई का गठन नहीं किया. बिहार नामक राज्य या प्रशाशनिक इकाई का गठन पहली बार तुगलकों ने किया था. तुगलक काल में इस क्षेत्र पर प्रभाव ज़माने के बाद तब के ओदंतपुरी का नाम बदल कर बिहारशरीफ (यह बिहारशरीफ अभी के नालंदा जिला का मुख्यालय है) कर दिया . बिहारशरीफ को को तुगलकों ने बिहार कि राजधानी बनाया तथा इससे सम्बद्ध समस्त प्रशानिक इकाई बिहार कहलाई.  बिहार नामक प्रशासनिक इकाई का सर्वप्रथम उल्लेख १३ वीं शताब्दी के मध्य में मिन्हाज की रचना तबकाते नासिरी में मिलता है. तुगलकों के विघटन के  बाद इस क्षेत्र पर अफगान शासकों का प्रभाव हुआ और उन्होंने भी इस क्षेत्र को बिहार कहा.  मुग़ल काल में बंगाल का हिस्सा बनने के पूर्व तक यह क्षेत्र बिहार कहलाता रहा. बाद में अंग्रेजों के शासन काल में 19 जुलाई 1905 को भारत के तत्कालीन वाइसराय कर्जन के द्वारा बंग-भंग के बाद बंगाल का प्रशासनिक पुनर्गठन की घोषणा किया गया. १९०५  से वर्ष १९१२ तक बिहार और उड़ीसा राज्य के गठन से पूर्व तक इस क्षेत्र के नामकरण पर विमर्श होता रहा. गौर करने वाली बात है बौद्धों का पवित्र शब्द विहार का अपभ्रंश होने के बाद भी इस क्षेत्र को पुनः बिहार नाम से निर्माण में किसी बौद्ध भिक्षु या बौद्ध संगठन ने पहल नहीं किया था. जबकि  मजहरुल हक़, अली इमाम और हसन इमाम जैसे बिहार नाम को पुनः स्थापित करने के लिए सक्रिय तौर पर मुखर थे. मजहरुल हक़, अली इमाम और हसन इमाम जैसे नामों को कुछ अन्य बुद्धिजीवियों का समर्थन भी मिला था. वर्ष १९०६ में सचितानंद सिन्हा और महेश नारायण  ने एक पुस्तिका जारी कर बिहार का समर्थन किया. इस क्षेत्र को फिर से बिहार नाम देने के लिए इन लोगों की ओर से पुरजोर कोशिश की गई.  जिसका नतीजा था कि 22 मार्च 1912 को जब ब्रिटिश भारत के गवर्नर लॉर्ड हार्डिंग ने बंगाल राज्य को विभाजित कर, राज्यों के गठन की अधिसूचना जारी किया तो उसमें बिहार और उड़ीसा नामक राज्य को स्थापित किया गया. 1 अप्रैल 1936 को आधुनिक ओड़िशा राज्य की स्थापना के बाद से इस क्षेत्र का स्वतंत्र तौर पर बिहार नाम रह गया. स्वतंत्र भारत भी में इस राज्य का वही नाम बरकरार है जिस नाम से इस क्षेत्र को गुलाम बनाने वाले लोगों ने शासन किया. जबकि इस क्षेत्र ने प्राच्य या पूर्व प्रदेश तथा उसके बाद के काल में उसके विभिन्न हिस्सों ने  मगध, अंग, वज्जि, मिथिला, ओदंतपुरी आदि नामों से 1,000 सालों तक सत्ता, शिक्षा, अर्थ और संस्कृति के क्षेत्र में तब के ज्ञात विश्व भर में  निर्णायक भूमिका निभाई. खासकर मगध कि महिमा तो किसी भी नाम की तुलना में अतुलनीय है.  बहरहाल, ऐसा लगता है कि समाजिक भावना और सामाजिक न्याय को सर्वदा से उच्च स्थान देने वाले इस क्षेत्र की विशेषता को बर्बाद करने के लिए पहले तुर्कों, तुगलकों, अफ़ग़ानों, मुगलों और बाद में अंग्रेजों ने इस क्षेत्र विशेष को बिहार कहा होगा.  मैं तो कहूंगा कि एक बार हमसब को किसी राज्य का नाम "बिहार" होने पर फिर से विचार करना चाहिए.  क्या आपको भी नहीं लगता कि बिहार नाम पर एक बार फिर से पुनर्विचार होना चाहिए? सोचियेगा अवश्य...