कौन है भारत भाग्य विधाता!

संजय झा, एडिटर इन चीफ
लोकतंत्र. देश. समाज. सत्ता. सरकार. सियासत अपनी जगह है. भारतीय समाज कई स्तरों पर विकास की बुनियादी बाट जोह रहा है. देश का जो आर्थिक घराना है उनके सुप्रीमो ने समाज को टूटने से बचाया है. भूख और गरीबी के मसले पर अपनी उदारता दिखाई है. इसलिए वे समाज के और देश के भाग्य विधाता हैं.
देश का भाग्य विधाता कौन है? देश के समाज का निर्माता कौन है? ये जो दो सवाल हैं, इसपर बहस की पूरी गुंजाइश है. सरकार क्या करती है, क्या नहीं करती है, ये सबको मालूम है. पूरा देश राजनीतिक नारों के नाव पर सवार होकर दशकों से हिचकोले खा रहा है. समाज के विकास का स्लोगन तो दिया जाता है लेकिन उसपर अमल करनेवाले सबके सब बेईमान किस्म के बताये जाते हैं. इसलिए बेईमानों के इन तबको पर बात करना मुफीद नहीं लगता. सच तो यह है कि समाज का वंचित तबका आज भी फटा सूथना पहने हुये जनगणमन गाता है. लेकिन उसे मालूम नहीं कि मेरा भाग्य विधाता कौन है. सत्ता, सरकार, सियासत के अपने-अपने दावें है. उन दावों की सच्चाई जगजाहिर है. शिक्षा-स्वास्थय, राेजगार या फिर यों कहे कि रोटी कपड़ा और मकान जैसे सवाल किस तरह हाशिये पर है. पूरा हिन्दुस्तान जानता है. ऐसी विषम स्थीति में इस बात की तलाश जरूर की जानी चाहिए कि असल में देश के समाज का असली भाग्य विधाता कौन है. देश के दर्जनों आर्थिक घरानें हैं, जिन्होंने समाज के निर्माण में अपना अहम योगदान दिया है. टाटा, बिड़ला, डालमिया, सिंघानिया, अंबानी, अडानी, अजीम प्रेमजी और अनिल अग्रवाल जैसे लोगों ने समाज के गरीब-गुरबा और वंचित तबको के लिए बहुत कुछ किया है. टाटा और बिड़ला ने तो समाजिक कार्यों का कई दशकों से इतिहास लिखते चले आ रहे हैं. अजीम प्रेमजी और अनिल अग्रवाल जैसे दानियों ने दान करके समाज को मजबूत करने की हर संभव कोशिश की है. कहना यह है कि देश का जो आर्थिक घराना है वही असल मयाने में समाज का निर्माता और भारत का भाग्य विधाता है. इस बात पर भले ही आपको ऐतराज हो सकता है लेकिन सच तो सच है. बस सच की तलाश कीजिए कि देश उधोगपतियों ने समाज निर्माण में किस तरह भूमिका निभाई है.
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