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अपना समाज

आवारा हूं राज कपूर साहब का सिनेमाई एंथम


  • 04/07/2024
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दिलीप कुमार पाठक
"गर्दिश में हूँ आसमान का तारा हूं आवारा हूं"...ये वो कालजयी गीत है जिसने दुनिया भर में भारतीय गीत-संगीत की पहिचान बना. इस गीत ने पूरे विश्व के सिने - संगीत प्रेमियों का ध्यान आकृष्ट किया. ग़र इस गीत को भारतीय सिनेमा का एंथम कहें तो शायद अतिशयोक्ति नहीं होगी. इस गीत ने दुनिया को बता दिया कि हम भारतीयों के रोम - रोम में संगीत बसा हुआ है. भले ही आपकी भाषा जो भी हो आप को यह गीत गुनगुनाने पर मज़बूर कर देगा. "आवारा हूं".. इस गीत की लोकप्रियता ऐसी कि देश - विदेश की सीमाएं लांघ दी... राज कपूर साहब - मुकेश - शैलेन्द्र, एवं शंकर - जय किशनजी के इस कालजयी गीत को अब तक  दुनिया भर के लगभग 20 भाषाओं में अनुवाद किया जा चुका है. रसिया, जापान, चाइना के राष्ट्राध्यक्षों पर इस गीत का ख़ासा प्रभाव पड़ा था, वो जब भी भारतीयों से मिलते वो इस गीत को ज़रूर गुनगुनाते हुए भारत के प्रति अपना प्रेम जाहिर करते थे. आवारा फ़िल्म ने "ग्रेट शो मैन राज कपूर साहब" को चार्ली चैप्लिन की तरह पहिचान मिली थी, इसी फ़िल्म के बाद राज कपूर साहब ग्लोबल स्टार बनकर उभरे थे. राज कपूर साहब के उस्ताद कविराज शैलेन्द्र जी ने जब पहली बार लिखकर इस गीत को सुनाया तो राज कपूर साहब ने इस गीत को रिजेक्ट कर दिया. बड़ा दिलचस्प है, इस गीत का तैयार होकर दुनिया के सामने आना. आज जब हिन्दी सिनेमा की कोई फिल्म ग्लोबल रिलीज होती है तो सहसा ग्रेट शो मैन राज कपूर साहब याद आते हैं. राज कपूर साहब भारत के पहले ऐसे फ़िल्मकार थे, जिन्होंने भारत सहित पूरी दुनिया में ख्याति प्राप्त की. राज कपूर साहब की फ़िल्मों ने एशिया सहित अफ्रीका, अमेरिका एवं गल्फ देशों में खूब लोकप्रियता कमाई, और व्यपारिक सफ़लता के भी रिकॉर्ड बनाए. 

ग्रेट शो मैन राज कपूर साहब के लोकप्रियता की शुरुआत उनकी कल्ट क्लासिक फिल्म "आवारा" से हुई थी.  फ़िल्म में ऑन स्क्रीन राज कपूर साहब एवं नर्गिस जी का रोमांस के साथ यादगार गानों  के साथ ही उसके गानों ने रूसियों के मन में ऐसी जगह बनाई कि राज कपूर साहब रातों-रात रसिया सहित पूरी दुनिया में सुपरस्टार के रूप में प्रसिद्ध हो गए थे. "आवारा" फिल्म बहुत बड़ी हिट साबित हुई थी, इस फ़िल्म को रूसी भाषा में भी बनाया गया था. वहीँ इस फिल्म को दुनिया में 'द वेगाबॉन्ड' नाम से जाना जाता है. गीत "आवारा हूं" तो एक प्रकार से रसिया में भारत का नेशनल एंथम बन गया था. देश के पहले पीएम पंडित नेहरू जी रसिया की यात्रा पर गए थे, तब डिनर का आयोजन किया गया, और वहाँ के तत्कालीन प्रधानमंत्री ने नेहरू जी के सम्मान में खुद यह गीत गुनगुनाते हुए उनका इस्तकबाल किया था. नेहरू जी ने एक बार कहा भी था- "राज कपूर रसिया में खासे लोकप्रिय हैं, मैं खुद देखकर आया हूं" 
     इसके बाद जब राज कपूर साहब की फिल्म "श्री 420" रिलीज हुई तो उनकी लोकप्रियता में और ज़्यादा इजाफ़ा हो गया. 1954 में जब राज कपूर साहब एक बार भारतीय प्रतिनिधि मंडल के साथ खुद रसिया की यात्रा पर गए थे, तो सड़कों पर उनके चाहने वाले यही गीत गाते हुए इस्तकबाल करते थे. और राज कपूर साहब जिस भी मीटिंग में जाते उनसे यह गीत गुनगुनाने के लिए गुज़ारिश की जाती और राज कपूर साहब को गुनगुनाना भी पड़ता था. राज कपूर साहब की बेटी ऋतु नन्दा ने अपनी किताब "राज कपूर द वन & ओनली शोमैन" में लिखा है - "राज कपूर साहब जब पहली बार रसिया की यात्रा पर गए थे. जब एयरपोर्ट से निकलकर बाहर गाड़ी में बैठे शहर से गुजरे थोड़ी देर बाद वहाँ की जनता ने राज कपूर साहब की गाड़ी को खुद ही उठा लिया. इस हद तक कि दीवानगी को शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता.  राज कपूर साहब जब भी किसी मीटिंग में पहुंचते तो उन्हें पियानो के स्टूल में बिठा दिया जाता था, और रूसी उनके फैन्स खड़े उनके साथ स्वर से स्वर मिला कर गाते... कल्पना की जाए कैसा माहौल होता रहा होगा. चाइना में भी इस फ़िल्म की दीवानगी अपने फलक पर थी. 1962 में जब चाइना के प्रधानमंत्री भारत दौरे पर आए तो उन्होंने "आवारा हूं" गीत सुनने की इच्छा जतायी थी. उस वक़्त किन्ही कारणों से गायक मुकेश जी उपलब्ध नहीं हो सके तब चाइना के पीएम को महान गायक तलत महमूद साहब ने यह गीत सुनाया था. टर्की में भी इस गीत के नाम पर एक टीवी सीरियल का निर्माण किया गया था. हम जितना भी जाएगें. "आवारा" की लोकप्रियता अचंभित करने वाली है... "आवारा हूं" इस गीत को लिखकर कविराज शैलेन्द्र जी ने जब पहली बार राज कपूर साहब को लिखकर सुनाया तो उन्हें यह गीत पसंद नहीं आया था. - "राज कपूर साहब ने कहा यार कविराज यह गीत चलेगा नहीं!! कोई दूसरा गीत लिखिए. आर के स्टूडियो में राज कपूर साहब की मित्र मण्डली अपने ज़माने की सबसे कामयाब रचनात्मक मित्र मण्डली थी. राज कपूर साहब ने देश के कोने-कोने से ढूंढकर होनहार लोगों का एक ग्रुप बनाया था. राज कपूर साहब ने आर के बैनर तले दोस्ताना माहौल कायम किया, जिनमे राजकपूर साहब के साथ गायक मुकेश जी, मन्ना दा, गीतकार कविराज शैलेन्द्र जी, हसरत जयपुरी साहब, संगीतकार शंकर - जय किशनजी की जोड़ी.... जैसे महान कलाकार शामिल थे. बड़ी बात यह है कि ये सब राज कपूर साहब के साथ काम करने के बाद ही महानतम बने. इन्हें दुनिया के सामने लाने का श्रेय ग्रेट शो मैन राज कपूर साहब को ही जाता है. इनमे दो कलाकार-अदाकारा नर्गिस जी, एवं कहानीकार 'ख्वाजा अहमद अब्बास' का नाम भी शामिल है, जो आर के बैनर के स्थायी सदस्य थे, हालांकि ये दोनों पहले से ही प्रसिद्ध थे. राज कपूर साहब एवं नर्गिस जी की रोमांटिक ऑन स्क्रीन जोड़ी लोगों को इतनी पसंद थी, कि रूसी लोगों ने दोनों को लव सिम्बल मान लिया था. 1951 में आई इस महान फ़िल्म के लेखक "ख्वाजा अहमद अब्बास" ने पहले यह कहानी महबूब खान को सुनाई, हालांकि यह फ़िल्म राज कपूर साहब को ज़्यादा ही पसंद आई. फ़िल्म "आवारा " एक ऐसे नव युवक की फ़िल्म है जो एक जज पिता की नाजायज़ औलाद होता है, इसलिए इसे पैदा होते ही त्याग दिया जाता है. मज़बूरी और बेकारी में 
 में वो नवयुवक  ज़ुर्म की दुनिया में दाखिल हो जाता है. वही नवयुवक एक दिन कत्ल के इल्ज़ाम में अपने पिता की अदालत में पेश होता है. "आवारा" का संदेश यह था कि कोई जन्म से अपराधी नहीं होता बल्कि मजबूरियां आदमी को ज़ुर्म के रास्ते पर ले जाती हैं. इसमे उनके पिता महान अदाकारा पृथ्वी राज कपूर ने ऑन स्क्रीन पिता एवं जज का किरदार निभाया था. तब तक मुगल ए आज़म का निर्माण नहीं हुआ था, अतः यह कालजयी किरदार पृथ्वीराज कपूर साहब की असल पहिचान बन गया था.. पृथ्वीराज कपूर साहब को तब तक आम लोग आवारा का बाप कहकर पुकारते थे. बाद में जब "मुगल ए आज़म" बनी तब कहीं जाकर उनकी वह छवि बदली. इसी फ़िल्म में किशोरावस्था वाले राजकपूर का किरदार उनके छोटे भाई शशि कपूर साहब ने निभाया था, वहीँ नर्गिस जी ने यादगार वकील का रोल किया था. 
     कविराज शैलेन्द्र जी को लेकर राज कपूर साहब कहानी सुनने के लिए "ख्वाजा अहमद अब्बास' के घर लेकर गए, जब दोनों ने कहानी सुनी तो दोनों को बहुत पसंद आई. तब राज कपूर साहब ने शब्दों के जादूगर कविराज शैलेन्द्र जी से कहा - "कविराज आप इस फ़िल्म की कहानी पर गाने लिखना शुरू कीजिए... तब कविराज ने फौरन फ़िल्म को एक लाइन में परिभाषित करते हुए कहा- "गर्दिश में था आसमान का तारा था आवारा था"... जब राज कपूर साहब ने यह सुना तो उन्होंने कहा कविराज यह गीत कुछ जमा नहीं, यह नहीं चलेगा. हालाँकि "ख्वाजा अहमद अब्बास" को यह लाइन बहुत पसंद आई, कविराज शैलेन्द्र जी ने पूरी फिल्म को एक लाइन में परिभाषित कर दिया था,  "ख्वाजा अहमद अब्बास" भी यही कहना चाहते थे... शब्द तो कविराज शैलेन्द्र के थे लेकिन कहानीकार के भाव यही थे. एक कहानीकार अपनी कहानी को सबसे ज्यादा जानता है. यह लाइन सुनकर  "ख्वाजा अहमद अब्बास" बोले - "वाह क्या कहने कविराज शैलेन्द्र जी ने पूरी फ़िल्म को एक लाइन में बहुत खूब पारिभाषित किया, इस गीत को तो फ़िल्म का टाइटल सोंग होना चाहिए". लेखक "ख्वाजा अहमद अब्बास" की बात सुनकर ग्रेट शो मैन राज कपूर साहब ने पुनः वही लाइन सुनी तो उन्हें भी यह लाइन सुनने में प्रभावी लगी.  राज कपूर साहब ने कहा कविराज यह गीत लिखिए इस गीत को फिल्म इस टाइटल सोंग ही बनाएंगे. और  यह गीत बनकर जब सिल्वर स्क्रीन पर आया तो संगीत के फलक पर कायम हो गया.. इस गीत ने देश - विदेश की सीमाएं लांघ दी.. इसी गीत ने ग्रेट शो मैन राज कपूर साहब को ग्लोबल स्टार बनाया, इसी गीत ने महान गायक मुकेश जी को दुनिया के प्रसिद्ध गायकों में शुमार करा दिया.. इसी गीत ने कविराज शैलेन्द्र जी की उनकी कविराज की उपाधि को पुख्ता कर दिया.. और इसी गीत ने शंकर - जय किशनजी को महानतम संगीतकारों में शुमार करा दिया. "आवारा हूं" गीत आज भी भारतीय सिने - संगीत के क्लास की गवाही देता है... भारत सहित लगभग 20 देशों में इस गीत को अनुवाद किया गया... जबकि आज भी यह गीत भारत से ज़्यादा रसिया में गाया गुनगुनाया जाता है. ग्रेट शो मैन राज कपूर साहब का यह गीत आज भी भारतीय सिनेमा का एंथम बना हुआ है... तब तक