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और सब ठीक है

अमन और प्रेम की तलाश

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संजय झा
एडिटर इन चीफ, जन सरोकार

देश है. शहर है. गांव है. समाज है. सफर है. जिन्दगी है. पड़ाव है. सवाल है. तलाश है. सपने हैं. खेत है. खलिहान है. जंगल है. पहाड़ है. झील है. झरना है. नफरत है. जलन है. ईर्ष्या है. झूठ है.  फरेब है. चालाकी है. शैतानी है. बदमाशियां है. चोर है. लुच्चा है. लफंगा है. हमें उनसे कोई शिकवा नहीं. सब काम पर लगे हुये हैं. प्रेम हमारा मूलमंत्र है. मनुष्य की आंखों में जो सपने हैं. हमें उन्हें पूरा होते देखने का सौ फिसदी मलाल है. जन सरोकार सामाजिक, आर्थिक इंम्पावरमेंट ट्रस्ट देश के 14 राज्यों में अपना तानाबाना तैयार की है. विगत 18 फरवरी को रांची प्रेस कल्ब में जन सरोकार ट्रस्ट ने आदिवासी युवा संवाद का सफल आयोजन किया. इस आयोजन में जो सवाल उभर कर आये उसमें पहला सवाल था कि सवालों को उठाने के लिए न सिर्फ एक मंच चाहिए बल्कि उसका अपना मीडिया भी हो. देश की पत्रकारिता का जो हाल है, वो किसी से छुपी हुई नहीं है. देश का आम आदमी पत्रकारिता में हाशिये पर है. उनके बुनियादी सवाल फाइलों में गुम हैं. यह सवाल यदि किसी पत्रकार को नहीं चुभ रहा तो समझ लीजिए हम सब बंजर हो चुके हैं. इसलिए हम साउथ एशिया को केंद्र में रखकर एक अलग तरह की पत्रिका लाने का बस प्रयास कर रहे हैं. यह कितना सफल हो पायेगा, मुझे नहीं मालूम. मुझे मालूम है कि आप संकल्प के साथ खडेÞ हों तो हर बाधाओं को पार करते हुये मंजिल के करीब पहुंच सकते हैं. हो सकता है हम मंजिल तक न भी पहुंचे लेकिन हमारा सफर जारी रहेगा. हमारी टीम हमारी ताकत है. हमारा मनोबल है. हमारा प्यार है. हमारे हिस्से का हिन्दुस्तान है. हम अपने अजीज साथियों के साझे हितों के एहसास से नदी में पत्थर फेंक रहे है. ताकि सूखती हुई मानवीय संवेदनाओं में रत्तीभर हिलोरे मार सके. हमें बहुत कुछ कहना नहीं है. गोया, संवाद अब चूक रहे हैं. शब्द अपनी अर्थवत्ता खो रहे हैं. हम एक ऐसे समय में जी रहे हैं जहां कोई किसी का सुन ही नहीं रहा है. इसलिए जन सरोकार पत्रिका एक अलग रास्ते की तलाश कर रही है. आप सबका प्यार. आप सबका सुझाव हमारे लिए जन सरोकार का असली मतलब है. मैं कोई दावा या वादा नहीं कर सकता. मुझे अपनी टीम पर भरोसा है. हम सामूहिकता में यकीन करते है. हमारे पास सिर्फ उम्मीद, भरोसा, विश्वास, सच, प्रेम की पूंजी है. हमारी टीम का यही मनोबल है. तो हमारे ट्रस्ट का भारतीय मीडिया में एक हस्तक्षेप जरूर है. वैकल्पिक पत्रकारिता की धार को तेज करना हम सबका मकसद है. तो इस तरह फूल, चिड़ियां, घोसला, नदी, समंदर, झील, झरना, खेत-खलिहान और देश का गांव हमारा जन सरोकार है. शुरू कहीं से भी हो बातें, खत्म मुस्कुराहटों से ही होनी चाहिए. सबको प्यार, सबको हमारा जोहार.